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(१३५) दार तुर्त समझ जायगा कि नवलरामको यह रचना गर्दभ
शृंगकी तरह सर्वथा अर्थ शून्य है. ___हा ! मिथ्यात्व !, तूं भी एक बूरी वला है. नवलराम जैसे एक अच्छे सुन्दर कविताकारकी भी बुद्धिको तूंने ही खराब की, जिससे वे पवित्र पुरुषोंके चरित्रामृतका पान नहीं कर सके, अरे ! पान नहीं कर सके इतना ही नहीं बल्के महात्माओंके लिये अगडं बगडं उटपटांग लिख कर पापकी गठडी शिरपें धर कर इस असार संसारसे कुच कर गये
श्रावकवर्य ! अब वेलातिक्रम हो रहा है, हमको भी साधु सामाचारीके अन्य कार्य करने हैं, अतः आज यहां ही रखते हैं.
पंचम-दिवस.
- पांचवें दिन षडावश्यक प्रतिलेखनादि साधु समाचा
रीके शुभकृत्योंसे निवृत्त हो कर सूरीश्वरजी अपने स्थान पर स्थित हो कर धर्मध्यानकी धूनमें बैठे हुए हैं. थोडे समयके बाद वह भव्यात्मा श्रावक मूरीश्वरजी के समीपमें आ पहुंचा और भावना सहित बंदन करके उचितासन पर बैठ गया और बडे विनयसे विज्ञप्ति की कि, भगवन् ! आगेका हाल सुनानकी कृपा करें. सूरीश्वरजी