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कटाक्षसे महादेवजी एक ही बार मोहित हो गए, इस कारण उसको देखनेसे और उस कर देखे जानेसे महादेवका मन अत्यंत विह्वल हुआ इस लिये महादेवजीने अपने निकटमें रहे हुए सेवक और पार्वतीको जाना भी नहीं वो मोहिनी जिस गेंदको उछाल रही थी, सो एक बार वो गेंद उसके हाथसे उछल कर दूर गिर पडा, उस गेंदको लेनेको जब वो बाला दौडी तब वायुके वेगसे कांची सहित कहीं वस्त्र उड गया, तब महादेवजी खडे होकर एक टक उसको देखने लगे, वैसे ही वो भामिनी भी कुंचित कटाक्ष चलाय कर उनको देखने लगी तब महादेवजीका मन उस पर अनुरागी हो गया और मोहिनीके हाव भाव से महादेवजीका मन ज्ञानशून्य हो गया तथा उसकी तल्लीनतामें ऐसे विह्वल हो गए कि पार्वती सामने खडी खडी देखती रहो मगर स्वयं निर्लज्ज होकर उस सुंदरीके समीप चले गए, यह मोहिनी कामिनी वस्त्र रहित थी इस लिये महादेवजीको निकट आते हुए देखकर लज्जित हुई और हंसती इंसती वृक्षों के आडमें जाने लगी, भगवान् महादेवजोकी इंद्रिय प्रवल होगई, वो पंचवाणके वश होकर उस स्त्रीके पीछे दौडने लगे जैसे यूथपति हाथी हस्तिनीओंके पीछे पीछे दौडता है, जब वो साधारण चालसे महादेवजीके हाथ नहीं आई तव महादेवजी अति वेगसे दौडे और उस स्त्रोकी इच्छा न देखकर केश पकडकर अपनी भुजाओंसे उसको अपने हृदयसे लगालिया, हाथी जिस प्रकार हाथिनोको आलिंगन करता है वैसे ही वो मनमोहिनी वाला भवानीपति महादेवजीके हृदयसे लिपटी हुई इधर उधर दौडने लगी जिससे उसके केश छुट