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दयसे मिथ्यात्वकी स्थितिका परिपाक हुआ है वे कितनेक मान भी जाते हैं बस इस लिये यह प्रयत्न है.
श्रावक-साहिब ! गोपाल और उसके दोस्त सुनारका क्या बनाव बना था ? और यहाँ पर यह दृष्टांत किस तरह संबंध रखता है ? सो कृपया फरमाइये.
सूरीश्वरजी-भव्यात्मन् ! सुनिये.
एक नगरमें पुरुषोत्तम नामका महा धूर्त स्वर्णकार रहता था, उसके पास कोई देवला नामका गोपाल-अहीर जव शहरमें आया जाया करता बैठ जाताथा, इस तरह वारंवार उसकी दुकान पर बैठनेसे आपसमें बडी मैत्री हो गई, एक दिन देवलाने सुनारसे कहा कि वर्षोंकी महिनतसे मैने कितनीक रकम जोडी हुई है, उसकी रक्षामें मुझे बडी फिकर रहती है, हमारें लोगोंका ज्यादा वर बहार सीममें ही फिरना होता है, जिससे दिल हरदम घरमेंही रहा करता है कि हाय! कोई निकाल कर ले न जाय, इस लिये कल रात्रि को मेरे दिलमें खयाल आया कि इस रकमका एक सोनेका निकर-नकुर कडा बनावे, जो हाथमें पड़ा रहे, जिससे हरदम साथ रहेगा और चिन्ता मिट जायगी, इस लिये तुम मेरे दोस्त हो, रकम मैं तुमको देता हूँ, तुमने कडा बना देना, सुनार बोला भाई ! दूसरेके वहाँ जाकर यह काम करा लेना मैं नहीं करता, उसने कारण पूछा, जवाबमें कारण यही कहा कि इस इलाकेके तमाम लोक मेरे शत्रु हैं, कोई कारीगरीमें नुक्स कहेगा तो कोई पीतल ही बतायेगा, इस लिये में मना ही करता हूँ, तब गोपालने