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(६८) महेशका स्वरूप है, उसके प्रसन्न होनेसे देवता प्रसन्न हो जाते हैं, इसमें सन्देह नहीं ॥ १८ ॥
इस उपरके लेखको पढ कर कौन ऐसा बुद्धिमान् है जो पुराणादिकोंके बनानेवालोंको गप्पोडीदास तथा स्वार्थी न समझें ? जो स्वयं परमात्माका स्वरूप बनना चाहते हैं.
शिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय ४९ में पार्वतीको महादेवजी कहते हैं" ब्रह्मा विष्णुरहं देवि !, बद्धाः स्मः कर्मणा सदा। कामक्रोधादिभिर्दोष-स्तस्मात् सर्वे ह्यनीश्वराः ॥ ७ ."
भावार्थ-हे देवि ! ब्रह्मा विष्णु और मैं सदा कर्मसे लिप्त हैं, सबमें काम क्रोधादि दोष लगे हैं इस कारण सव अनीश्वर हैं ॥७॥
इस उपरके लेखसे सिद्ध हुआ कि ब्रह्मा विष्णु और शिव ये तीनों ही देव काम क्रोधादि दोषोंसे युक्त थे तो फिर इन कामी क्रोधीओंके पूजनेसे जीवोंका कल्याण कैसे हो सकता है ?.
शिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय ३५ वे में भी पौराणिकोंने स्वार्थका ही पोषण किया है, देखो" आचार्य ! त्वं महाविष्णु-व्यासरूपो नमोऽस्तु ते । प्रसन्ने त्वयि विप्रेन्द्र !, प्रसन्नो मे सदा शिवः ॥१॥ ग्रन्थान्ते विधिवद्दद्या-द्विद्वद्भयो भूरिदक्षिणाम् । ततो वक्तारमानम्य, सम्पूज्य च यथाविधि ॥ २॥ भूषणैर्हस्तकर्णानां, वौहेमादिभिः सुधीः । शिवपूजासमाप्तौ तु, दद्याद्धेनुं सवत्सकाम् ॥३॥