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( ३३ ) छूट कर मुक्तिकी प्राप्ति होनी सर्वथा असत्य है, कारण कि शिवपुराण तथा अन्यपुराणोंसे साफ जाहिर हो जाता है कि शिवजीमें महात्मापनेका लक्षण बिलकूल नहीं था, तो फिर निरतिशय सामान्य जीवोंके कर्त्तव्यसे भी पतित कर्त्तव्य करनेवाले शिवकी कथा श्रवणसे क्या लाभ ?, बस साबित हुआ कि यह व्यर्थ ही महिमाका गान किया गया है.
शिवपुराण ज्ञानसंहिता अध्याय ३२ वा तथा ३३ वा देखो, उसमें गणेशकी उत्पत्तिके वारेमें ऐसे लिखा है कि पार्वतीजीने अपने हाथोंके मैलसे पुत्र बनाया और दरवाजे पर पहेरदारके ठिकाने उसको बिठा कर स्नान करने लगी, उसी समय महादेवजी आये और भीतर जाने लगे तब उस द्वारपाल लडकेने रोका जब महादेवजी गुस्से में आकर बलात्कारसे भीतर घूसने लगे, तब उस लडकने महादेवजीको मारा, बस कह ना हो क्या था, तुरत महेश्वरने अपने गणको हुकम किया कि इससे लडो, मालिकके हुकमको मानकर गण लडने लगा, मगर उस लडकेने उनके भी दंन खट्टे किये, वे घबराकर भागे, महादेव जीने उसको सतेज करनेको, स्वयं उनका साथ किया और लडाइ शुरु की, मगर क्या ताकाद ? लडकेको हटा सके, सगण महादेवजीका बुरा हाल हो गया, तब ब्रह्मा विष्णु और इंद्र वगैरा देवता महादेवजीकी मददमें उतरें, मगर किसीकी पेश नहीं चली, ये सब देखते ही रहगये और उस लडकेने परिघ मारकर महादेवजीकी कमर तोड डाली, और पांच हाथ भी तोड डाले, मतलब उस लडकेने सबको हरा दिया, तब विष्ण कहने लगे कि छल किये विगैर यह नहीं मारा जायगा, आबा महादेवजीने उसका शिर त्रिशुलसे