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( ३२ ) किया जाय तो साफ मालूम हो जायगा कि इसमें ऐसी तारीफ को कोई बात नहीं है, देखिये शिवपुराण माहात्म्य अध्याय द्वितीयके दूसरे पत्रमें-देवराज नामका महापापी ब्राह्मणका बयान है, जिसने चारों ही जातिके अनेक मनुष्यों को मार कर उनका धन हर लिया और अपने माता पिता तथा स्त्रीको भी जानसे मार कर उनसे भी धन छीन लिया, अभक्ष्य भक्षण तथा मदिरापान करने लगा, वेश्याके साथ एक पात्रमें भोजन करनेसे भी परहेज नहीं करताथा, वह पापो देवराज दैवयोगसे पतिष्ठानपुरमें गया, वहांपर साधु पुरुषोंकर सहित एक शिवालय देखा, उसमें कयाम-मुकाम किया, वहांपर शिवकथा हमेशह सुनता रहा, एक दिन जबरदस्त ज्वरने उसे सताया,
और वह मर गया, बादमें यमदूत बांध कर यमपुरीमें ले गये, उसी वख्त शिवजी का गण शिवलोकसे यमपुरीमें जाकर उसे छोडाकर शिवपुरीमें ले गये, इस विषयमें नीचे लिखे हुए श्लोक आते हैं, सुनो
" धन्या शिवपुराणस्य, कथा परमपावनी । यस्याः श्रवणमात्रेण, पापीयानपि मुक्तिभाग् ॥ ३७ ।। सदाशिव महास्थान-परं धाम परंपदं । यदाहुर्वेदविद्वांसः, सर्वलोकोपरि स्थितम् ॥ ३८ ॥ ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः, शूद्रा अन्येऽपि पाणिनः । हिंसिता धनलोभेन, बहवो येन पापिना ॥३९॥ मातृपितृबन्धून् हन्ता, वेश्यागामी च मद्यपः। देवराजो द्विजस्तत्र, गत्वा मुक्तोऽभवत् क्षणात् ॥ ४० ॥"
इत्यादि अत्यन्त महिमा गाई है, परंतु हमारी समझमें तो यही आता है कि शिवपुराणके सुननेसे घोर पापोंसे