________________
मरणमै हृदय स्फोट रुदन किया हो; उसे उस समय परमात्मा कहनेवालोंको बुद्धिमान कैसे कह सकते हैं ? - ९- नाँवा दूषण भय नामका है सो भी परमात्मामें न होना चाहिये, जो किसीसे भी भयभ्रांत होकर भागता है वो किसी तरहसे परमात्मा नहीं हो सकता, जैसे वृकासुरसे महादेवजी भागे थे, जो स्वयं भयसे दौड भाग करता है वह हमें किस तरह छूडा सकता है ?, अगर मान लिया जाय कि यत् किंचित् दुनियाँई सहारा दे भी सके तो भी वह परमात्मा तो होही नहीं सकता, जो दूसरेसे डरता हुआ भागा फिरे.
१० जगुप्सा नाम घृणा-नफरतका है सो भी प्रभुमें नहीं होता, नफरत किसी गंदी चोज के देखनेसे होती है, सो वस्तु स्वरूपके अखिल पर्यायों को जाननेवाले नहीं होती और जो होना मान लिया जाय तो वो महादुःखी हो जावे, कारण कि जैसे अपनेको किसी वस्तुको देखकर नफरत होतो है तो अपन मुँह फिरा लेते हैं और ठीक हो जाता है, मगर परमात्मा सर्वज्ञ होनेसे सर्वकाल सर्ववस्तुओं को देखते हैं, वो कहां मुह फिरायेंगे ? मतलब, कहीं भी नही फिरा सकते, बतालाइये ?, फिर नफरत हो तो कितने दुःखी हो जावे वास्ते उनमें यह भी दूषण नहीं होता.
११-चा दूषण शोक, सोभी परमात्मामें नहीं होता, मगर किसी शास्त्रमें अवतारमें शोक होना सावित हो तो समझ लेना कि वह प्रभु स्वरुप अवतार नहीं, सामान्य जीव है.
१२- काम यानि विषय वासना, यह भी प्रभु दशामें नहीं होता अगर है तो वह सामान्यजीव है, ऐसे मानना चाहिये