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प्रवचन-१
कैसे गिर सकते हैं ? छोटा पत्थर छोटा है, बड़ा पत्थर बड़ा। बड़ा पहले गिरेगा, छोटा पत्थर पीछे गिरेगा। और उन्होंने जाने से इन्कार किया।
पण्डित सबसे ज्यादा जड़ होते हैं। अध्यापक थे, विश्वविद्यालय के पण्डित थे। • उन्होंने कहा यह हो ही नहीं सकता। जाने की जरूरत नहीं। फिर भी, बामुश्किल प्रयास करके वह ले गया और पण्डितों ने देखा कि बराबर दोनों साथ गिरे, तो उन्होंने कहा कि इसमें जरूर कोई जालसाजी है। क्योंकि ऐसा हो कैसे सकता है ? या शैतान का कोई हाथ है। ___ इस उदाहरण को मैं इसलिए कह रहा हूँ कि जमीन के अतिरिक्त और एक ग्रेवीटेशन (गुरुत्वाकर्षण ) है । एक कशिश, एक गुरुत्वाकर्षण नीचे खींचने का। और परमात्मा में भी, निराकार में भी एक वीटेशन है, एक कशिश है, ऊपर खींचने का। यह जो निराकार फैला हुआ है ऊपर, वह चीजों को ऊपर खींचता है। हम जमीन की कशिश को तो पहचान गए धीरे-धीरे, परन्तु ऊपर की कशिश को हम नहीं पहचान पा रहे हैं क्योंकि जमीन पर हम सब हैं, उस ऊपर की कशिश को कभी कोई जाता है और जो जाता है वह लौटता नहीं तो कुछ खबर मिलती नहीं। वह जो ऊपर की, कशिश है, उसी का नाम ग्रेस है। इसको प्रेविटी, उसका प्रेस । इसका गुरुत्वाकर्षण, उसका प्रभुप्रसाद । कोई और नाम भी दो तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वहां छोटी और बड़ी ज्योति का सवाल नहीं। वह ज्योति भर बन जाए बस । छोटो ज्योति उतनो हो गति से चली जाती है जितनी बड़ी, वह ग्रेस खींच लेती है निराकार की। इसलिए वहां कोई छोटा-बड़ा नहीं, क्योंकि वहां छोटेबड़े का कोई अर्थ नहीं। ___तो बुद्ध और महावीर में कौन बड़ा, कोन छोटा-यह साधारण लोगों की गणित की दुनिया है जिससे हम हिसाब लगाते हैं। और साधारण गणित की दुनिया से प्रसाधारण लोगों को नहीं तोला जा सकता। इसलिए वहां कोई बड़ा-छोटा नहीं। साधारण से बाहर जो हुआ, वह बड़े
और छोटे की गणना से बाहर हो जाता है। इसलिए इससे बड़ी भ्रान्ति कोई नहीं हो सकती कि कोई कृष्ण में, काइस्ट में, कोई बुद्ध में, कोई महावीर में तौल करने बैठे। कोई कोर में, नानक में, रमण में, कृष्णमूति में, कोई तोल करने बैठे कि कौन बड़ा, कौन छोटा; कोई छोटा-बड़ा नहीं है। लेकिन, हमारे मन को बड़ी तकलीफ होती है, अनुयायी के मन को बड़ी . तकलीफ होती है, कि हमने जिसे पकड़ा है वह बड़ा होना चाहिए। और इसी