Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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लगती है तथा हर्ष और उल्लास से परिपूर्ण हो उठती है। इसी प्रकार का आवेग उदात्त की सृष्टि करता है। इसके विपरीत कुछ "ऐसे भी आवेग होते हैं जो औदात्य से बहुत दूर हैं, और जो निम्नतर कोटि के हैं, जैसे दया, शोक भय आदि। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस प्रकार के भाव उदात्त की सृष्टि में सर्वथा असमर्थ ही नहीं वरन् बाधक भी होते हैं।
लौंजाइनस का दृढ़ विश्वास है कि" सच्चे बाग्मी (कलाकार) को निश्चय ही क्षुद्र और हीनतर भावों से मुक्त होना चाहिए क्योंकि यह संभव नहीं है कि जीवन-भर क्षुद्र उद्देश्यों और विचारों में ग्रस्त व्यक्ति कोई स्तुत्य एवं अमर रचना कर सके।" "महान शब्द उन्हीं के मुख से निःसृत होते हैं, जिनके विचार गम्भीर और गहन हों।
एक दूसरे प्रकार से भी डॉ0 नगेन्द्र ने उदात्त के आन्तरिक स्वरूप की व्याख्या की है और वह है प्रभाव वर्णन। प्रभाव वर्णन द्वाराः उदात्त का प्रभाव अत्यन्त प्रबल और दुर्निवार होता है।"
वास्तव में महान रचना वही है जिससे प्रभावित होना कठिन ही नहीं लगभग असम्भव हो जाय और जिसकी स्मृति इतनी गहरी हो कि मिटाए न मिटे। साधारण औदात्य के उन उदाहरणों को ही श्रेष्ठ और सच्चा मानना चाहिए जो सब व्यक्तियों को सर्वदा आनन्द दे सके। "बज्रपात का बिना पलक झपकाए सामना करना तो आसान है, किन्तु एक के बाद एक तीव्र गति से होने वाले उस भाव विस्फोट को अविचल दृष्टि से देखना सम्भव नहीं।"
1. काव्य में उदात्त तत्व (डॉ० नगेन्द्र) पृष्ठ-52 2. काव्य में उदात्त तत्व (डॉ० नगेन्द्र) पृष्ठ-54 3. काव्य में उदात्त तत्व (डॉ० नगेन्द्र) पृष्ठ-99-100 4. काव्य में उदात्त तत्व (डॉ0 नगेन्द्र) पृष्ठ-52 5. काव्य में उदात्त तत्व (डॉ० नगेन्द्र) पृष्ठ-52
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