Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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छायावादी कवियों मे अन्य गुणों के साथ ही साथ एक गुण और परिलक्षित होता है-वह है ज्ञानदयी माँ सरस्वती की वन्दना। हालांकि सम्पूर्ण काव्य में प्रकृति एवं सुन्दर नायिका का उल्लेख बार-बार प्रस्फुटित हुआ है लेकिन मॉ सरस्वती की उपासना कवि निराला के काव्य का एक महत्वपूर्ण अंग है।
"जागो, जीवन धनिके! विश्व-पण्य–प्रिय वणिके!
खोलो उषा-पटल निज कर आयि,
ज्ञान-विपणि-खनिके। कवि निराला यहाँ यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि ज्ञान और सम्पत्ति के समन्वय द्वारा ही देश की प्रगति संभव है। और जहाँ देश प्रगति और ज्ञान के विकास की बात हो तो हमारा ध्यान महाज्ञानी, वाक्पटु विवेकानन्द की तरफ जाना स्वाभाविक है निराला जी पर विवेकानन्द का प्रभाव कलकत्ता प्रवास के समय से ही हो गया था, जो उनके काव्य में रह-रहकर स्वयं आ जाया करते हैं। पण्य-प्रिय में 'प' की आवृत्ति आने से अनुप्रास का प्रभाव काव्य पर झलकता
कवि निराला के काव्य लिखने का एक अलग अन्दाज था वे जिस तरह सामाजिक जीवन में परम्पराओं, रूढ़ियों का परित्याग कर स्वतन्त्र रूप से जीने के आदि थे उसी प्रकार काव्य में भी वे बन्धन-मुक्त होकर कविता-पाठ करते देखे गये हैं। तभी तो वही पहले कवि हुए जिन्होंने अपने सम्पूर्ण काव्य को छन्दों के बन्धन से मुक्त कर सम्पूर्ण काव्य जगत को एक नई दिशा देने की कोशिश
1. जागो जीवन धनिके! निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ-256
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