Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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न केवल छायावादी रचनाओं में बल्कि पूरे हिन्दी साहित्य में एक मील का पत्थर साबित हुई । 'राम की शक्ति पूजा' जिसका लम्बा सुगठित रचना - विधान खड़ी बोली पर आधारित काव्य भाषा की अभूतपूर्ण - व्यंजना क्षमता का उद्घाटन करती है, यह शुद्ध सामासिक शैली में लिखी गयी है। इसी संकलन में 'ठूंठ' जैसी कविता भी है जो अपने रचना विधान में बेजोड़ है। कवि ने 'ठूंठ' जैसी मामूली वस्तु को प्रतीक के रूप में ग्रहण करके उसके माध्यम से जीवन की उदासी और श्रीहीनता की गहरी व्यंजना विकासित की है। इसके बाद 'तुलसीदास' और 'कुकुरमुत्ता' जैसी दो प्रबन्धात्मक कृतियाँ प्रकाश में आयीं। एक में कवि ने छन्द की मौलिक प्रकृति और दूसरे में मुक्तक का प्रयोग किया है। 'तुलसीदास' में निराला ने भाषागत् अभिजात्य का प्रयोग किया है। यहाँ कवि ने संस्कृति के कोशवाची शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है। 'कुकुरमुत्ता' के माध्यम से कवि ने एकदम साधारण ग्रामीण और कठोर शब्दों का भरा-पूरा आत्म-विश्वासी व्यक्तित्व सिरजा है और इस परम्परित धारणा को निर्मूल कर दिया है कि कविता की रचना के लिए संस्कारशील शब्द ही उपयुक्त होते हैं। यहाँ कवि ने उर्दू शब्दों और एकदम ग्रामीण शब्दों की ठेंठ मुहावरेदानी की सर्वथा नवीन क्षमता मुखरित की है। इन दोनों प्रबन्धात्मक कृतियों के बाद कवि का जो नया काव्य संग्रह प्रकाश में आया वह 'अणिमा' था। इसके बाद 'बेला', 'नये पत्ते, 'अर्चना', 'आराधना', 'गीत-गुंज' और 'सान्ध्यकाकली' जैसे काव्य-संग्रह प्रकाश में आए। 'नये - पत्ते' को सपाट-बयानी के नाते, और 'बेला' को कवि के भाषिक प्रयोग के नाते विशिष्ट प्रसिद्धि मिली। 'बेला' में कवि ने उर्दू गजलों से प्रभावित होकर उन्हे हिन्दी गीतों में ढ़ालने की साहसिक कोशिश की है ।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि निराला के काव्य में क्या नहीं है। साहित्य और संगीत का पूर्ण-संगम, भाषा की ओजस्विता, वीरत्व की भावना मानवीयकरण, मानव मूल्यों का उदात्तीकरण अर्थात् सब कुछ तो है । निराला
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