Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के दूसरे अध्याय में निराला के काव्य विकास की सर्जनात्मक अभिव्यक्ति को उनके प्रकाशन वर्ष के क्रम में रखते हुए उनकी मूल संवेदना पर प्रकाश डाला गया है। निराला की सर्जना का प्रथम सोपान 'अनामिका' से शुरू होता है यद्यपि यह कवि का प्रथम काव्य संकलन था फिर भी अपने समकालीन कवियों की आरम्भिक कविताओं के कच्चेपन की तुलना में 'अनामिका' के कवि की भाषिक सर्जनात्मकता स्पृहणीय है। 'परिमल' कवि की सर्जना का दूसरा सोपान है, जिसमें 'यमुना के प्रति जैसी लक्षण प्रधान आलंकारकि कविता के साथ-साथ स्वर-विस्तार एवं नाद योजना से युक्त कविताएँ भी हैं। इसी संग्रह में मुक्त-छन्द का उद्घोष करने वाली 'जूही की कली' जैसी कविताएं भी हैं। कवि का अगला काव्य-संग्रह “गीतिका' जो 1936 में प्रकाशित हुआ था जिसे हम कविता के औदात्य और संगीत की माधुरी का समन्वय कह सकते हैं। यहां कविता को संगीत से जोड़ने का सफल प्रयास निराला जी ने किया है। संगीत और माधुरी तथा कविता का औदात्य मिलकर यहाँ एक अपूर्व रागात्मकता का सृजन करती हैं, कवि ने 'गीतिका' के गीतों में गंभीर चिन्तन, सांस्कृतिक सन्दर्भो, विविध प्रणय-स्थितियों को अनुस्यूत करने की सफल चेष्टा की है। संगीतात्मकता को केन्द्र में रखकर रचे गए इन गीतों में कविता के अनुभव को और कविता के रचना-प्रक्रिया को आश्रत रखने की सजगता है।
अनामिका के द्वितीय संस्करण में कवि के परिवर्तित मनः स्थिति का पता चलता है इस संकलन में तत्सम् शब्दावली पर आधारित भाषिक सर्जनात्मकता के प्रति कवि का झुकाव और आत्म-विश्वास अधिक मुखारित हुआ है। 'प्रेयसी' और 'रेखा' जैसी लम्बी प्रणय कविताओं के साथ-साथ 'राम की शक्ति पूजा' और 'सरोज-स्मृति' जैसी क्लैसिकल और यथार्थ-परक शिल्प की दोहरे रचना-विधान की भाषिक संरचना से युक्त कविता भी है। 'राम की शक्ति-पूजा'
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