Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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जैसा महान कवि युग-युगान्तर में ही पैदा होता है। जो धरती के दुःख दर्द को पहचानता है और अपने को स्थूल से सूक्ष्म बना लेता है।
प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के तृतीय अध्याय में निराला के काव्य का लौंजाइनस के उदात्त-सिद्धान्त के आधार पर आलोचनात्मक परीक्षण किया गया है। लौंजाइनस के औदात्य सिद्धान्त के पाँचों प्रतिमानों को निराला काव्य में ढूँढ़ने का सफल प्रयास किया गया है। यद्यपि इस शोध-प्रबन्ध में निराला काव्य के केवल एक पक्ष अर्थात् निराला काव्य के औदात्य तत्व पर ही विचार किया गया है। किन्तु औदात्य की प्रकृति और निराला के काव्य विकास को भी इस शोध-प्रबन्ध में निरूपित किया गया है। ताकि पूरे शोध प्रबन्ध का एक कम बना रहे और निराला का पूरा का पूरा काव्य औदात्य की दृष्टि से सामने आ जाय।
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