Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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निराला काव्य में ओज की प्रवाह-पूर्णताः -
__ निराला की भाषा का प्रवाह उसका आवेग- आवेश, चाहे वह लेखन का हो या वाचन का, वह एक अनुभव की वस्तु है। एक जगह 'रघुवीर सहाय' ने लिखा है-" मेरे मन में पानी के कई संस्मरण हैं निराला के काव्य को अजस्र निर्भर मानकर मैं भी कह समता हूँ कि मेरे मन में पानी के कई संस्मरण हैंअजस्र बहते पानी के, फिर वह बहना चाहे मुसलाधार वृष्टि का हो, चाहे धुंआधार जलप्रपात का, चाहे पहाड़ी नदी का, क्योंकि जब निराला कविता पढ़ते थे तब ऐसी ही वेगवती धारा सी बहती थी, किसी रोक की कल्पना भी तब नहीं की जा सकती थी- सरोवर सा ठहराव भी उनके वाचन में अकल्पनीय था।" 'राम की शक्ति-पूजा' में ओज की प्रवाह-पूर्णता देखते ही बनती है:
"रवि हुआ अस्त : ज्योति के पत्र पर लिखा अमर; रह गया राम-रावण का अपराजेय समार।
उद्गीरित-बहिन-भी-पर्वत-कपि-चतु : प्रहर
जानकी-भीरू- उर-आशाभर- रावण-सम्बर।।"2 निराला ने यहाँ राम-रावण के अनिर्णीत युद्ध का वर्णन किया है। यहाँ शब्दों का प्रयोग इतनी कुशलता के साथ किया गया है कि इनको पढ़ने पर ऐसा लगता है जैसे पाठक के सामने ही कोई युद्ध छिड़ा हुआ हो और व्यूह-समूह-प्रत्युयं-हूह आदि ध्वनि-प्रधान शब्दों से मानों युद्ध की भयावहता प्रत्यक्ष हो रही है। यहाँ युद्ध के वातावरण को सजीव बनाने के लिए 'ट' वर्ग के अक्षरों, महाप्राण ध्वनियों, सत्यानुप्रासों का सुन्दर प्रयोग किया गया है भाषा में ओज-गुण की दीप्ति दृष्टव्य है ।
1. नाम-पथ : निराला जन्मशताब्दी अंक 1996 : पृष्ठ - 152 2 राम की शक्ति-पूजा : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ – 1329
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