Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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कवि निराला ने खण्डहर के माध्यम से भारत के अतीत गौरव का वर्णन किया है। यहाँ खण्डहर उस ध्वस्त गौरव का प्रतीक है जो किसी समय अद्भुत था किन्तु जिसको हम लोग भूल गए। इस कविता के माध्यम से कवि की देश-भक्ति मुखर हुई है। कविता के अन्त में कवि भारत के उज्जवल भविष्य की मंगल कामना भी करता है।
निराला अपने कवि-कर्म के प्रति पूर्ण सजग एवं चैतन्य है। भाषा गरिमा-वैचारिक-भव्यता और आवेग जैसे कवि के नैसर्गिक गुण इसमें दिखाई देते हैं। बिम्ब, प्रतीक, अलंकार एवं शब्द-विन्यास आदि की निपुणता निराला के सर्जनात्मक वैशिष्टय् को प्रमाणित करती है। इसके प्रकृति चित्रण का कहना ही क्या? उस पर मुग्ध होकर विश्वम्भर मानव लिखते हैं प्रकृति का जैसा उद्घोष निराला जी ने यहॉ किया है वैसा कम कवि कर पाते हैं। प्रारम्भ से ही इनकी प्रकृति संकेतमयी रही है। उसी के माध्यम से कवि ने दो संस्कृतियों के वैषम्य की कथा समझायी है, उसी के आधार पर तुलसी के अर्न्तद्धन्द को चित्रित किया गया है और वही उन्हें मोह के परदे को सरकाकर सत्य के दर्शन कराती है। इस रचना में प्रकृति के कई विराट चित्र अंकित हुए है। उसकी जड़ता और चेतना दोनों को ठीक से पहचानकर कवि ने उसके माया-मय माध्यम और चिन्मय दोनों स्परूपों को अच्छा उद्घाटित किया है।
एटकिन्सन ने लौंजाइनस के सर्जनात्मक वैभव की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि- "There are, things in its that can, be never grow old, while its freshness and light will contine to charm all ages.”
उनके इन विचारों को हम निःसन्देह निराला की इस दिव्य सर्जना के सन्र्दभ में अक्षरशः सत्य मान सकते हैं। निराला की इस अनूठी रचना को पढ़कर भाषा-मर्मी एवं शब्द-शिल्पी अज्ञेय जी को उसके सन्दर्भ में नये ढ़ग से सोचने को बाध्य होना पड़ा था। वे लिखते हैं कि इसके बाद की जिस भेंट का उल्लेख
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