Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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जाता था । यदि 'होमर' काव्य की सफलता श्रोताओं को मुग्ध करने में मानता था तो एरिस्थोफेनीस कवि का कर्तव्य पाठकों को सुधारना मानता था । इसी प्रकार वक्ता या RHATONICIAN का गुण समझ जाता था - संतुलित भाषा सुव्यवस्थित तर्क द्वारा श्रोता के मस्तिष्क पर इस तरह छा जाना कि वह वक्ता की बात मान ले। इस प्रकार लौंजाइनस से पूर्व साहित्यकार का कर्तव्य-कर्म समझा जाता था शिक्षा देना आहलाद प्रदान करना और प्रत्यय उत्पन्न करना । लौंजाइनस ने अनुभव किया कि इस सूत्र में कुछ कमी है। क्योंकि काव्य में इन तीनों बातों के अलावा भी कुछ होता है। लौंजाइनस काव्य के लिए भावोत्कर्ष को मूल तत्व, अति आवश्यक तत्व मानता था । उसने निर्णायक रूप से यह सिद्धान्त प्रस्तुत किया कि काव्य या साहित्य का परम उद्देश्य चरर्मोल्लास प्रदान करना है। पाठक या श्रोता को वेदान्तर - शून्य बनाना है ।
यद्यपि लौंजाइनस ने उदात्त की कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी थी लेकिन उसका मानना था कि 'उदात्तता' साहित्य के हर गुण मे महान है उसके अनुसार यही वह गुण है जो अन्य छोटी-छोटी त्रुटियों के बावजूद साहित्य को सच्चे अर्थों में प्रवाहपूर्ण बना देता है। उसने व्यवहारिक और मनौवैज्ञानिक दोनों दृष्टियों से 'उदात्तता' को जॉचा परखा। उसने एक ओर जहाँ उदात्त के बहिरंग तत्व की चर्चा की वहीं दूसरी ओर उसके अन्तरंग तत्वों की ओर भी संकेत किया। उदात्ता के इस विवेचन में उसने पाँच तत्वों को आवश्यक बताया, (1) महान धारणाओं या विचारों की क्षमता (2) भावावेग की तीव्रता ( 3 ) समुचित अलंकार योजना (4) उत्कृष्ट भाषा (5) गरिमामय रचना - विधान |
महान धारणाओं या विचारों की क्षमता के संबंध में लौंजाइनस ने कहा कि उस कवि की कृति महान नहीं हो सकती जिसमें धारणाओं की क्षमता नहीं है, उदात्त गुण महान आत्माओं में आश्रय पाता है क्षुद्र विचार वालों में नहीं । धीर-गुरू गंभीर प्रतिभावान व्यक्ति की वाणी से भव्यता का स्फुरण हो सकता है
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