Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 174
________________ करना चाहता हूँ, उससे पहले निराला जी के काव्य के विषय में मेरा मन पूरी तरह बदल चुका था। वह परिवर्तन कुछ नाटकीय ढग से ही हुआ शायद कुछ पाठकों के लिए आश्चर्य की बात होगी कि वह उनकी 'जूही की कली' व 'राम की शक्ति-पूजा' पढकर नहीं हुआ उनका 'तुलसीदास पढ़कर हुआ। अब भी उस अनुभव को याद करता हूँ तो मानों एक गहराई में खो जाता हूँ। अब भी 'राम की शक्ति-पूजा' अथवा निराला के अनेक गीत बार-बार पढ़ता हूँ, लेकिन निराला के काव्य जब-जब पढ़ने बैठता हूँ तो इतना ही नहीं कि एक नया संसार मेरे सामने खुलता है उससे भी विलक्षण बात यह है कि वह संसार मानों एक ऐतिहासिक अनुकम में घटित होता हुआ दिखता है। मैं मानो संसार का एक स्थिर चित्र नहीं बल्कि एक जीवित चल-चित्र देख रहा होता हूँ। ऐसी रचनाएं तो कई होती है जिनमें एक रसिक हृदय बोलता है। बिरली ही रचना ऐसी होती है जिनमें एक सांस्कृतिक चेतना सर्जनात्मक रूप में अवतरित हुई हो। कवि निराला के काव्य में ऐसी कई रचना है जो एक बार पढ़ने के बाद बार-बार पढ़ने की इच्छा जागृत होती है। मेरी बात में जो विरोधाभास है वह बात को स्पष्ट ही करता है, 'राम की शक्ति पूजा' हो, या 'यमुना के प्रति हो, 'सरोज-स्मृति' हो या 'तुलसीदास' इन सबके साथ ही साथ उनकी अन्य कविताएं अपनी ओर आकर्षित करती हैं। स्पष्टतः वह उदात्त रचना का ही प्रभाव हो सकता है जिस भी पाठक को ऐसी गंभीर साहित्यिक संस्कार और सोच समझ होगी उसके लिए यह बोधगम्य बनेगी। निराला की काव्य-भाषा की प्रमुख विशेषताएं रही हैं- कोमलता, शब्दों की मधुर-योजना, भाषा का लाक्षणिक प्रयोग, संगीतात्मकता, चित्रात्मकता, प्रकृतिगत् प्रतीकों की प्रचुरता तथा रूढ़ियों का विरोध । भाषा को कोमलता प्रदान करने के लिए निराला ने अंग्रेजी और बांग्ला की पद्धति को अपनाया है। स्वर्णमय, स्वप्निल, छल-छल, कल-कल, छलना, कुहकिनी, आदिक शब्दों की 170

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