Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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देश को मिल जाय जो
पूँजी हमारी मिल में है।।" समाजवाद की अर्थ-पद्धति में विश्वास करते हुए कवि निराला का मानना है कि पूँजी केवल देश की होनी चाहिए, व्यक्ति की नहीं, 'देश को मिल जाय जो पूँजी तुम्हारे मिल में है' को कहने का तात्पर्य यह है कि पूँजीवादी व्यवस्था देश के लिए हानिकारक है। इससे गरीबी और अमीरी के बीच की खाँई बढ़ती है पूँजीपतियों द्वारा गरीबों का शोषण न हो इसके लिए कवि ने अपनी सर्जनात्मक अभिव्यक्ति दी है।
अतीत का वर्तमान से सामन्जस्य :
निराला ने भारत की प्राचीन सांस्कृतिक पक्ष का उद्घाटन 'अनामिका' की कुछ कविताओं में बड़े ही सुन्दर ढ़ग से किया है। 'यमुना के प्रति', 'दिल्ली' खण्डहर के प्रति और 'यही' में कवि ने अपने अतीत के वैभव को देखा है कवि खण्डहर से पूछता है कि अपने अतीत के वैभव को देखा है कवि खेडहर से पूछता है कि तुम्हारा उद्देश्य क्या है? :
"आर्त भारत! जनक हूँ मैं; जैमिनि-पतंजलि-व्यास-ऋषियों का। मेरी ही गोद पर शैशव-विनोद कर; तेरा है बढ़ाया मान। राम-कृष्ण-भीमार्जुन-भीष्म नर देवों ने;
भूले वे मुक्त प्रान, साम-गान-सुधापान।"
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