Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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सौन्दर्यगर्विता सरिता के वक्ष स्थल में, हिमगिरि अटल-अचल में, क्षिति में, जल में, नभ में, अनिल, अनल में फैल जाती है । सारा छन्द उसकी नीरवता, आदि गुणों को अपनी लय में इस तरह बाँध लेता है कि सम्पूर्ण अंकन अभूतपूर्व बन
जाता है।
निराला की कविताओं में सौन्दर्य एवं राग का अद्भुद सामंजस्य दिखायी देता है। उनके अधिकांश प्रगीतों में राग तो है ही साथ ही साथ सौन्दर्य भी है:
" (प्रिय) यामिनी जागी
असल पंकज-दृग अरूण - मुख
तश्रण अनुरागी ।
खुल केश अशेष शोभा भर रहे
पृष्ठ- ग्रीवा - वाहु - उर पर तर रहे
बादलों में घिर अपर दिनकर रहे
ज्योति की तन्वी तड़ित
तिने क्षमा माँगी ।।""
'यामिनी जागी' शीर्षक कविता की पंक्तियों में राग और सौन्दर्य का अद्भुत सामंजस्य है, सौन्दर्य-वर्णन रीति-कालीन काव्य शैली पर है। संस्कृतनिष्ठ कोमलकान्त पदावली के समास पद्धति का सुन्दर प्रयोग है। पूरे छन्द में मानवीकरण का आरोप है, मानवीकृत प्रकृति पर नारी का यह आरोप एक अतिन्द्रियता का आभास होता है।
1. ( प्रिय) यामिनी जागी निराला रचनावली भाग ( 1 ) : पृष्ठ - 253
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