Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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ज्योति की तन्वी, तड़ितद्युति से क्षमा माँगी। हेर उर-पट, फेर मुख के बाल लख चतुर्दिक चाली मन्द-मराल गेह में प्रिय-स्नेह की जयमाल वासना की मुक्ति-मुक्ता
त्याग में तागी।" यहाँ हम अप्रस्तुत कल्पना और बिम्ब का एक असाधारण मिलन पाते हैं। 'अलस पंकज दृग-अरूण-मुख तरूण अनुरागी' एक रूपक है। इसी प्रकार 'बादलों' में फिर अपर दिनकर रहें' भी अप्रस्तुत योजना है। परन्तु शेष सारी कविता बिम्बात्मक है। केवल अंतिम दो पंक्तियाँ 'वासना की मुक्ति', 'मुक्ता त्याग में तागी' बिम्ब की सीमा के बाहर है। इस प्रकार वर्ण्य वस्तु बिम्ब के रूप में प्रस्तुत हुई है, उस बिम्ब को अलंकृत करने के लिए अप्रस्तुत का प्रयोग हुआ है। निराला की 'भिक्षुक', 'विधवा', 'सन्ध्या-सुन्दरी' जैसी रचनाओं में वर्ण्य-वस्तु बिम्ब के रूप में प्रस्तुत की गयी है। चित्रण प्रधान कवि होने के कारण निराला में बिम्बों के निर्माण की सशक्त प्रवृत्ति देखी जाती है। निराला की 'भिक्षुक' कविता में कवि ने एक भिखारी का सहानुभूतिपूर्ण चित्र खींचा है:
"पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक; चल रहा है लकुटिया टेक, मुट्ठी भर दाने को-भूख मिटाने को मुँह फटी-पुरानी झोली को फेलातादो टुक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।"
1. (प्रिय) यामिनी जागी : निराला रचनावली भाग एक : पृष्ठ - 253 2. "भिक्षक' : निराला रचनावली भाग एक : पृष्ठ -76
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