Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 166
________________ कोमलानुभूति दोनो अनुभूतियाँ निराला काव्य को औदात्य की ऊँचाई पर पहुँचाते हैं। 'सरोज-स्मृति' हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ शोक-गीत है। यद्यपि इसका कथानक पुत्री के निधन के प्रसंग को लेकर हैं। किन्तु बीच-बीच में आयी हुई अनेक स्मृतियाँ इस शोक को और बढ़ा देती हैं। निराला को 'सरोज' और उसके भाई की मार-पीट का चुभता हुआ दृश्य याद आ जाता है : "खाई भाई की मार, विकल रोई, उत्पल-दल-दृग-छलछल; चुमकारा फिर उसने निहार; फिर गंगा तट-सैकत विहार। करने को लेकर साथ चला; तू गहकर चली हाथ चपला ।' 'सरोज-स्मृति' की इन पंक्तियों में सरोज के बाल्यकाल की स्मृति निराला को गहरे शोक में डूबो देती हैं। शोक के अनुरूप ही भाषा प्रयोग कुछ इस तरह हुआ है मानो छोटी सी बच्ची के रूप में सरोज पाठक के सामने उपस्थित हो जाती है। आगे इसी कविता में विनोद-व्यंग्य का पुट विवाह पद्धति को लेकर है: "ये कान्य-कुब्ज कुल कुलांगर खाकर पत्तल मे करें छेद इनके कर कन्या, अर्थ खेद इस विषय बेलि में विष ही फल है दग्ध मरूस्थल नहीं सुजल।"2 1. सरोज-स्मृति : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ – 317 2. सरोज-स्मृति : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ - 321 162

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