Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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का निर्माण किया गया है, जिसके प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ एवं पंचम् चरणों में 16-16 मात्राएँ हैं और तृतीय एवं षष्ठ चरणों में 22-22 मात्राएँ, अन्त्यानुप्रास का कम यह है कि वह और द्वितीय चतुर्थ और पंचम् तथा तृतीय और षण्ठ को मिलता है।
"चल गन्द चरण आये बाहर उर में परिचित वह मूर्ति सुघर जागी विश्वाश्रय महिमाधर, फिर देखा संकुचित, खोलती श्वेत पटल । बदली, कमला तिरती सुख-जल,
प्राची -दिगन्त-उर में पुष्कल रविरेखा ।।2 महाकवि निराला का व्यक्तित्व उदारता, सरलता, स्पष्टवादिता, निष्कपटता और सदाशयता की प्रतिमूर्ति था। वे भीतर से जितना ही निष्कपट और सरल थे बाहर से उतना ही मृदुल। उनके यहाँ कृत्रिमता का कोई स्थान नहीं था स्वभाव से वे विनोदप्रिय थे। संक्षेप मे कहा जा सकता है कि नाम के अनुरूप ही उनका व्यक्तित्व भी निराला था। कहने का तात्पर्य यह है कि निराला का पूरा का पूरा सर्जनात्मक व्यक्तित्व उनके खुद के व्यक्तित्व से काफी कुछ मिलता-जुलता हैं। 'राम की शक्ति-पूजा' की निम्नलिखित पंक्तियाँ उनके शब्द-योजना को उद्धृत करती है
"बिच्छुरित वह्नि-राजीव-नयन-हत-लक्ष्य-वाण, लोहित-लोचन-रावण-मदमोचन–महीयान; राघव-लाघव-रावण वारण गत युग्म प्रहर
1. निराला संस्करण:इन्द्रनाथ मदानःपृष्ठ-170 2. तुलसीदासः निराला रचनावली भागएक : पृष्ठ-307
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