Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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"उत्कृष्ट- भाषा का प्रयोग" :
इसके अन्तर्गत वर्ण्य–विन्यास, शब्द-चयन तथा रूपकादि का प्रयोग आता है। लौंजाइस ने विचार एवं पद-विन्यास को इस प्रकार अन्योन्याश्रित माना है। जैसे- आत्मा एवं शरीर। उदात्त-विचारो की सर्जना में साधारण शब्द अनुपयोगी हो जाते हैं, अतः गरिमामयी भाषा आवश्यक हो जाती है। शब्दों के सौन्दर्य से ही शैली गरिमामयी बनती है। सुन्दर शब्द ही विचारों को अभिनव आलोक प्रदान करते है, इसी प्रकार साधारण भावों की अभिव्यक्ति के लिए गरिमामयी भाषा अनुचित लगने लगती हैं अनुकूल ध्वन्यात्मक शब्दों के प्रयोग तथा शब्दयोजना में संगीतात्मकता का कमिक नियोजन भी भाषिक-गरिमा में वृद्धि करता है और लौंजाइनस के अनुसार भाषा का वैशिण्टय एवं चरमोत्कर्ष ही उदात्त है। यही एक मात्र स्रोत है जिससे महान कवियों एवं इतिहासकारों को जीवन में प्रतिष्ठा और अमर यश मिलता है। निराला जी का कथन है कि प्रकृति की स्वाभाविक चाल से भाषा जिस तरफ भी जाए शक्ति सामर्थ्य और मुक्ति की तरफ या सुखानुशयता, मृदुलता और छन्द लालित्य की तरफ, यदि उसके साथ जातीय जीवन का भी संबध है तो यह निश्चित रूप से कहा जाएगा कि प्राण-शक्ति उस भाषा में है। वास्तव में जातीय जीवन का यह उन्मेष निराला की भाषा को प्राणवान बनाता है।
___उत्कृष्ट भाषा प्रयोग के अन्तर्गत् शब्द-चयन बिम्ब-विधान तथा शैलीगत् परिष्कार अतभूत हैं। यह स्पष्ट है कि उपयुक्त एवं प्रभावोत्पादक शब्दावली श्रोता को आकर्षित करती हुई उसे भावाविभूत कर लेती है। ऐसी शब्दावली जिसमें भव्यता-सौन्दर्य ओज आदि श्रेष्ठ गुणों की अभिव्यक्ति हो प्रत्येक वक्ता या लेखक के लिए स्पृहणीय है। सुन्दर शब्द ही वास्तव में विचारों को विशेष
1. निराला संस्करण : इन्द्रनाथ मदान : पृष्ठ-127
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