Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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हद तक जाने का प्रयास करती है लेकिन समाज की व्यवस्था समाज का तिरस्कार उसको अन्दर से झकझोरता है। भारतीय समाज यदि किसी विधवा के प्रति संवेदना भी व्यक्त करता है तो मात्र उसे बेचारी कहकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पाना चाहता है । सम्पूर्ण छन्द का कवि ने मानवीकरण किया है।
महाकवि निराला प्रकृति को माध्यम बनाकर अपने भाव, अपनी वेदना को जनता तक पहुँचाने का माध्यम बनाते थे । यहाँ कवि प्रकृति में अपने भावों की प्रतिच्छाया देखते हुए सान्ध्य कालीन वातावरण का वर्णन करते हैं -
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"तप तप मस्तक
हो गया सान्ध्य नभ का रक्ताभ दिगन्त - फलक;
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सिक्त - तन-केश शत लहरों पर
काँपती विश्व के चकित - दृश्य के दर्शनशर । ।""
यहाँ प्रकृति के माध्यम से कवि ने अपनी भावों की अभिव्यक्ति की है उपवन - बेला का मानवीकरण किया गया है। अन्यथा सम्पूर्ण प्रकृति वर्णन उद्दीपन विभवान्तरगत् है । हँसती उपवन बेला में मानवीकरण का पुट झलकता है ।
इन अलंकारों के अतिरिक्त शब्द विचारों के क्रम में उलटफेर, छिन्न, वाक्य, वचन, कारक, पुरूष एवं लिंग परिवर्तन आदि के द्वारा भी निराला ने अपने काव्य में अभिनय उत्कर्ष लाने की सर्जनात्मक कोशिश की है, भावयित्री और कारयित्री प्रतिभा से आद्य कुशल शिल्पी ने अपने रचना संसार में समुचित अलंकार योजना का विधान करके औदात्य सृजन में पूर्ण सफलता पायी है। ऐसा अप्रतिम शब्द-विधान देखकर कोई भी सहृदय पाठक चमत्कृत हुए बिना नहीं रह पाता है।
1. वन - बेला : निराला रचनावली भाग (1) - पृष्ठ-348
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