Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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"बसन्ती की गोद में तरूण सोहता स्वस्थ मुख वाला सा।
गोमती क्षीण कटि नटि नवल;
नृत्य पर मधुर आवेग चपल।" यहाँ कवि प्रकृति में नारी का दर्शन एक प्रेयसी के रूप में करता है यहाँ 'किसलयों' के अधर एवं 'सौरभ वासना गोमती नहीं' नवल में रूपक अलंकार का पुट झलकता है। बसन्त ऋतु को नायिका रूपी प्रकृति का बालक कवि निराला ने बताया है। लज्जा शील एवं कोमलांगी युवतियों के कोपक रूपी यौवन के मद से भरे हुए लाल-लाल ओठ सुशोभित थे। यहाँ कवि प्रातः कालीन प्रकृति की शोभा देखते हुए प्रकृति रहस्यपूर्ण नियमों पर विचार करते है। महाकवि निराला सरोज-स्मृति सिर्फ एक शोख-गीत नहीं है यह पुत्री की मृत्यु के बाद एक पिता का दार्शनिक अन्दाज भी है। यहाँ निराला अपनी स्वर्गीय पुत्री सरोज को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि:
"ऊनविंश पर जो प्रथम चरण; तेरा वह जीवन-सिन्धु-तरण;
करती हूँ मैं यह नही मरण,
सरोज का ज्योति; शरण-तरण"2 अपनी ही जवान पुत्री की अर्थी को अपने कन्धों पर ले जाकर घाट पर पहुँचाना फिर उसे काव्यमय रूप देना निराला जैसे महाकवि के ही वश की बात हैं। यहाँ महाकवि का अपनी पुत्री से यह कहलवाना कि पिता जी आज मैं पूर्ण
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1. 'दान' : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ - 307 2. 'सरोज-स्मृति' : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ - 315
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