Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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देखा एक कली चटकी है।" यहाँ निराला जी कहते हैं कि मनुष्य को दम्भ एवं अहंकार छोड़कर सरल तथा शीतल शब्द का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि यह मानवीय गुण है कि अगर जिस व्यक्ति में दम्भ अहंकार हाबी हो गया हो ऐसे लोगों को के मन में अज्ञानता घर कर जाएगी इसीलिए कोई भी सफल व्यक्ति अहंकारी एवं दम्भी नहीं हो सकता। इस काव्य मे पहाड़ अपनी गुरूता के घमण्ड में खड़े हुए थे वे नदी को नन्हीं-मुन्नी बच्ची की तरह समझते थे तथा इधर शिलाखण्डों को देख थर-थर काँप रहे है। यहाँ शिलाखण्ड एवं नरमुण्ड् में रूपक अलंकार दृष्टव्य
है।
कवि निराला 'प्रेयसी' के माध्यम से लौकिक श्रृंगार संबंधी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते है :
"घेर अंग-अंग को लहरी तरंग वह प्रथम तारूण्य की,
शिशिर ज्यों पत्र पर कनक प्रभात के,
किरण सम्पात से।" कवि नवयौवना नायिका का वर्णन प्रकृति के उददीपन रूप में ग्रहण करता है नायिका का यौवन जल की लहरों की तरह हिचकोले ले रहा है, निराला ने प्रकृति के मानवीकरण के माध्यम से नौयवना नायिका के अंर्तमन् का सरल चित्र खींचा है। यहाँ तरू-तन में रूपक अलंकार झलक रहा है।
इसी प्रकार कवि निराला बसन्त ऋतु में गोमती नदी के तट को प्रातः कालीन छटा का वर्णन कवि निराला करते हैं।
1. 'धारा' : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ - 84 2. 'प्रेयसी : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ -324
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