Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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कहता है कि आपसी फूट ही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी और दुश्मन की सबसे बड़ी ताकत है। कवि कहता है :
"किन्तु हाय! वीर राजपूतो की; गौरव-प्रलम्ब ग्रीवा;
अपने सहोदर-मित्र;
निस्सहाय त्रस्त भी उपाय शून्य ।। कवि निराला अपने देश के भटके हुए भाईयो को उस अतीत की गाथा सुनाकर और उसका परिणाम बताकर, साथ ही साथ कुल गौरव की मान-मर्यादा और पुरूषत्व को जगाकर भटके हुए भाईयों को एक प्लेटफार्म पर लाने का सफल प्रयास किया था। कवि एकता का विगुल अपने काव्य के माध्यम से फूंकने का प्रयास करता ही और कहता है कि हमारी एकता फिरंगियों को वापसी की बुनियाद रखेगी। यहाँ 'धूप सी' और 'सिन्धु ज्यों में उपमा अलंकार झलकता है। कवि निराला विभिन्न कथाओं का सार लेकर यमुना को माध्यम बनाकर, अतीत का गुणगान-कर, जन-मानस में नव-चेतना का संचार करते
"अलि-अलकों के तरल तिमिर में; किसकी लोल लहर अज्ञात।
बजते हैं अब उन चरणों में; अब अधीर नूपुर-मंजीर?"
1. छत्रपति शिवाजी का पत्र : निराला रचनावली भाग (1)-पृष्ठ - 157 2. यमुना के प्रति : निराला रचनावली भाग (1)- पृष्ठ - 118
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