Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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यहाँ कवि निराला का प्रकृति-प्रेम मुखर है, यहाॅ सन्ध्या-सुन्दरी एक नई नवेली दुल्हन की तरह सज धज कर आसमान से मानों धीरे-धीरे उतर रही हो । यानी कवि की नायिका नई नवेली दुल्हन की तरह धीरे-धीरे कदम आग बढा रही है। यहाँ 'सन्ध्या सुन्दरी' की 'परी-सी' उपमा द्रष्टव्य है ।
इसी प्रकार कवि
इलाहाबाद प्रवास के दौरान पत्थर तोडती एक मजदूर महिला के मर्म को नजदीक से जाँचा - परखा । तो यह है कि कवि उस महिला के अर्न्तमन् को वाणी प्रदान की है
" चढ़ रही थी धूप;
गर्मियों के दिन |
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प्रायः हुई दुपहर;—
वह तोड़ती पत्थर ।"
यहाँ कवि का एक मजदूरनी नारी का पत्थर तोड़कर गिट्टी बनाना वह भी चिलचिलाती दोपहरी में । यहाँ गरीब भारतीय नारी के बेवसी का चित्रण स्पष्ट झलकता है। 'रूई ज्यों' में उपमालंकार का समावेश है ।
महाकवि निराला राम के मनोवैज्ञानिक स्थिति का सहज चित्र खींचते है, सीता की कुमारिका छवि की झाँकी पाते ही राम को अपने पराक्रम का स्मरण हो आता है। स्वाभाविक है कि ऐसे में राम के मन में उठे अर्न्तद्वन्द का चित्र कवि ने खींचा हैं
"सिहरा तन क्षण-भर भूला मन, लहरा समस्त;,
हर धर्नुभग को पुनर्वार ज्यों उठा हस्त, ।
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फिर सुना - हॅस रहा अट्टाहास रावण खल- खल
1. वह तोड़ती पत्थर : निराला रचनावली भाग ( 1 ) - पृष्ठ-343
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