Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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सौंपता तुम्हें मैं
स्मृति सी निज प्रेम की। 2
यहाॅ पर कवि निराला अतीत के माध्यम से भारत वासियों को यह सोचने को कहते हैं कि अपसी फूट से लाभ हमेशा विदेशियों का हुआ है वह आहवान करते हैं कि आओं हम एकता की डोर को और मजबूत करें, जयसिंह के माध्यम से कवि उन अंग्रेजी हुक्मरानों के इशारे पर निरीह भारतवासियों को खून बहाने वालों से प्रश्न करता है कि जरा सोचो वह खून किसका बहा है। प्रश्नालंकार स्वयं में स्पष्ट है।
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छायावादी शैली की यह एक विशेषता ही कही जाएगी कि वह काव्य को स्वर - लहरी लालसा प्रभृति अमूर्त वस्तुओं और भावनाओं का मानवीकरण देखते ही बनता है। रहस्यवाद की व्यंजना एवं कवि की जिज्ञासा देखते ही बनती है:
"किस समीर से काँप रही वह वंशी की स्वर - सरित - हिलोर - ?
किस बितान से तनी प्राण तक
छू जाती वह करूण मरोर ?"3
कवि प्रकृति में किसी अज्ञात सत्ता का दर्शन करता है इस शक्ति का प्रेयसी के रूप दर्शन किया गया यहाँ कवि कहता है यमुने! वह बंशी की स्वर रूपी सरिता की लहर किस वायु का स्पर्श पाकर काँप रही है? प्रश्नालंकार का
समुचित समावेश दृष्टव्य है ।
1 जन-जन के जीवन के सुन्दर अपरा: पृष्ठ: 161
2. छत्रपति महाराज शिवाजी का पत्र : निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ - 158
3. यमुना के प्रतिः निराला रचनावली भाग एकः पृष्ठ-118
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