Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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का संचालन करती है तभी तो निराला जी अदृश्य शक्ति यानी भगवान से वरदान मांगते हैं कि वह मुझे इस बात की अनुमति दें कि वह उनके चरणों में सर्वस्व समर्पण कर सकें।
"दाग दगा की आग लगा दी तुमने जो जन-जन की, भड़की;
करूँ आरती मैं जल-जल कर||" कवि वियोग्नि के वशीभूत जीव-प्रभु-दर्शन के लिए निरन्तर व्याकुल रहता है, यानी हे प्रभु आपने जो आग की चिनगारी प्रत्येक जन के हृदय में डाली वह अब प्रज्जवलित हो गयी है यानी पूरी तरह धधक रही है। मुझे प्रभु ऐसा वरदान (शक्ति) दो कि मैं उस आग में जल-जलकर आपकी आरती उतारूँ। ‘जन-जन' और 'जल-जल' पुनिरूक्ति प्रकाश का पुट दृष्टिगोचर होता
'प्रश्नालंकार' :
कवि निराला के काव्य में प्रश्न कभी स्वगत् कथन में होता है, कभी सीधा होता है, इस प्रकार के अलंकार में भावोद्धेलन की प्रधानता हैं। जैसे
महाराज जयसिंह के नाम 'छत्रपति शिवाजी का पत्र' में काव्यमय अंकन है। लेकिन कविता में ऐसा मालूम पड़ता है कि कवि अपने आप से प्रश्न करता है, छत्रपति शिवाजी महाराज जयसिंह को पत्र के माध्यम से सोचने की सलाह देते है:
"करो तुम विचार; तुम देखों वस्त्रों की ओर।
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