Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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कवि निराला छायावादी शैली पर अपनी पुत्री के सौन्दर्य का रहस्यात्मक वर्णन किया है, कवि ने पुत्री 'सरोज' के यौवनागम का भाव-पूर्ण चित्र प्रस्तुत किया है:
"धीरे-धीरे फिर बढ़ा चरणः
बाल्य की केलियों का प्राङ्गण। xx
परिचय-परिचय पर खिला सकल
नभ पृथ्वी, द्रुम कलि, किसलय-दल ||" . महाकवि 'प्रेयसी' के माध्यम से लौकिक श्रृंगार संबंधी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते है।, तथा साथ ही पूर्वराग का वर्णन करते हैं
"तब तुम लघुपद-विहार;
अनिल ज्यों बार-बार। xxx
श्लथ गात तुममें ज्यों;
रही मैं बद्ध हो।" कवि निराला के प्रेयसी की मनोदशा ऐसी जैसे मानो हवा वीणा के तारों को बार-बार झनझना देती है अपने इस गीत पर सुखद तथा मनोहर दान के उस आकर्षण में हृदय की लहरों से मैं संसार के दुःख तथा क्लेशों को भूल गई
और शिथिल गात हो कर मैं तुमसे बँधी सी रह गई। 'बार-बार' पुर्नरूक्ति प्रकाश अलंकार है।
छायावादी कवियों में निराला रहस्यवाद एवं दार्शनिक चीजों में अति विश्वास करते थे, कवि का मानना है कि कोई अदृश्य शक्ति है जो सारे संसार
1. सरोज स्मृति : निराला रचनावली भाग(1) : पृष्ठ: 319 2. 'प्रेयसी' निराला रचनावली भाग एकः पृष्ठ-327
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