Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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कवि निराला यहाँ बड़ा ही कारूणिक चित्र प्रस्तुत करते हैं साथ ही अपने राम का मानवीकरण करते हुए अश्रु-पुरित नेत्रों से विभीषण को कहलवाते है कि हे मित्र विभीषण मैं अपने बचन को पूरा करने में असमर्थ हूँ स्वाभाविक रूप से महाशक्ति अन्याय के प्रतीक रावण का साथ दे रही है।
कुछ क्षण तक रहकर मौन सहज निज कोमल स्वर बोले रघुमणि - मित्रवर विजय होगी न समर
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उतरी पा महाशक्ति रावण से आमंत्रण |
अन्याय जिधर है उधर शक्ति कहते छल छल । ""
यहाॅ कवि निराला ने पात्रों के मानसिक अर्न्तद्वन्द का बड़ा ही सजीव एवं प्रभावशाली वर्णन किया है, इसमें कवि ने सामान्य मानव के मानसिक दुर्बलता को भी चित्रित किया है साथ ही साथ दिए गए वचन को न निभा पाने की असमर्थता स्पष्ट परिलक्षित होती है। इधर कवि राम के प्रति पाठकों की सहानुभूति बटोरने में सफलता भी प्राप्त की है । अन्याय जिधर है उधर शक्ति में विरोधाभास है।
कवि निराला अपने देश की विधवाओं के अन्तर्मन को छूने और उसके कष्ट को करीब से देखने का सफल प्रयास किया है यहाँ कवि भारतीय समाज द्वारा विधवाओं के लिए बनायी गई बन्दिशों की गहराई में जाकर समीक्षा की है साथ ही साथ हमारे देश की विधवाओं का लेखा-जोखा बड़े ही सजीव तरीके से अपने काव्य में उतारा हैं
" षड्-ऋतुओं का श्रृंगार,
कुसुमित कानन में नीरव - पद - संचार, व्यथा की भूली कथा है;
1. राम की शक्ति-पूजा निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ - 334
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