Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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'पिक-प्राक' में 'प' की आवृत्ति का बार-बार होना अनुप्रास को परिलक्षित करता
है ।
कवि निराला ने रीतिकालीन कवियों की तरह नख - सिख वर्णन तो नहीं किया है। लेकिन ये भी रीतिकालीन काव्य लहरियों के हिचकोलों से सरावोर नहीं तो अछूते नहीं थे। इस काव्य में भी कवि ने नेत्रों का अन्य कोणों से काव्यात्मक चित्र खींचने का एक सफल प्रयास किया है
" प्रेम-पाठ के पृष्ठ उभय ज्यों;
खुले भी न अब तलक खुले हों,
नित्य अनित्य हो रहे हैं, यों
विविध विश्व दर्शन प्रणयन ये ।। " "
रीतिकालीन शैली का यह शब्द चमत्कार ही है । कवि ने नायिका के सुन्दर नयन को इस प्रकार वर्णन किया है मानो उसके दोनों नयन प्रेम-पाठ के दो पृष्ठ हैं, जो नित्य और अनित्य रूप में मानों संसार के समस्त दार्शनिक सिद्धान्तों को रचने वाले हैं। प्रेम पाठ के पृष्ठ एवं विविध विश्व में 'प' और 'ब' की आवृत्ति का पुट अनुप्रास अलंकार को दर्शाता है।
छायावादी काल की कविताओं में ओजपूर्ण एवं देश भक्ति से युक्त कविताओं का सुन्दर समावेश किया गया है, इसी क्रम को आगे बढाते हुए निराला जी ने भी महाराज जयसिंह के नाम छत्रपति शिवाजी को पत्र का काव्यमयअंकन किया है। शिवाजी अपने पत्र के माध्यम से जयसिंह को संबोधित करते हुए कहते हैं कि:
"दुर्गद् ज्यों सिन्धुनद; और तुम उसके साथ
वर्षा की बाढ ज्यों
1. फुल्ल नयन ये अपरा पृष्ठ - 75
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