Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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बसन बासन्ती लेगी ।
शैल-सुता अर्पण-अशना ।1 यहाँ कवि शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या करती हुई पार्वती ने पत्तों तक का आहार करना त्याग दिया था। जिस प्रकार रीति परिपाटी में कवि नारी में प्रकृति का दर्शन पाते थे, उसी प्रकार यहॉ भी नारी में प्रकृति का समावेश परिलक्षित है, कवि निराला के काव्य में नारी की रूप-रेखा को प्रकृति से जोड़कर दिखाने पर अनेक आलोचकों ने निराला के काव्य में रीति कालीन कवियों का प्रभाव में आने की बात कहीं है जबकि यह सही नहीं है। 'ब'और 'अ' की आवृत्ति से अनुप्रास का प्रभाव झलकता है।
___ छायावादी कवि प्रकृति के बसन्त-रूपी पतझड़ एवं नई कोपलों का ही वर्णन नहीं करते हैं। अपितु ग्रीष्मकालीन प्रकृति-रूपी नायिका का अंतरंग एवं बहिरंग चित्र खींचने का प्रयास किया है:
"वर्ष का प्रथम; पृथ्वी के उठे उरोज मंजु पर्वत निरूपम। किसलयों बँधे;
पिक-भ्रमर-गुंज मुखर प्राण रच रहे सधे। 2 यहाँ कवि पृथ्वी पर जगह-जगह उठे पर्वत की तुलना नायिका के उरोज से की है। यहाँ कवि ने प्रकृति का वर्णन आलम्बन रूप में किया है। मानवीकरण की सरल पद्धति अपनायी गयी है। यहाँ निराला ग्रीष्म की तपन के माध्यम से ओज की मधुर व्यंजना की है। उपर्युक्त काव्य लय एवं संगीत युक्त है,
1. बसन्त बासन्ती लेगी : अपरा : पृष्ठ-58 2. वन-बेला : निराला रचनावली भाग (1): पृष्ठ - 345
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