Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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अत्याचार बढ़ता है किन्तु हमारे बीच कोई राम नहीं है जो यह प्रण कर सके कि "निसिचर हीन करऊँ महि" राम का यह शौर्य सुप्त हो गया है उसकी वीरता का आभूषण छिप गया है अतः यह चिन्ता किसी दयालु हृदय में ही जाग सकती
आत्म-विश्वास की दृढ़ताः
कवि निराला का पूरा जीवन उतार चढ़ाव एवं दुख सुख के झंझावातों से परिपूर्ण था। कवि इसके बाद भी अपने आत्म-बल एवं दृढ़ता से पूरी तरह लवरेज दिखाई देता है:
करना होगा यह तिमिर पार देखना सत्य का मिहिर द्वार बहना जीवन के प्रखर ज्वार में निश्चय लड़ना विरोध से द्वन्द-समर रह सत्य–मार्ग पर स्थिर निर्भर
जाना-भिन्न भी देह, निज घर निःसंशय ।।" जहाँ निराला इस तरह की प्रेरणा देते हुए दिखाई देते हैं वहाँ हमें उस वैदिक ऋषि की स्मृति हो आती है जो पूषन् से प्रार्थना करता है कि:
"हिरण्य मयेन पात्रेण सत्य स्यापिहितम् मुखम् तत्वं पूषन्नपावृणु! सत्य धमाये द्रष्टये।।
1. 'तुलसीदास ' : निराला रचनावली(1) पृष्ठ289: सुधा-मासिक रचना-1934 2. ईशावास्येनिषद् - 15
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