Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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कितने छोड़े और सवार।" यहाँ कवि युद्ध का एक भयानक चित्र प्रस्तुत करता है और यह भी दर्शाने का प्रयास करता है कि युद्ध से आर्थिक शारीरिक हानि ही नहीं होती है बल्कि युद्ध मानव के लिए एक विनाश का मार्ग प्रशस्त करती है। जिससे न सिर्फ एक राष्ट्र एक मनुष्य का नुकसान होता है वरन् सम्पूर्ण मानवता कलंकित होती है। साथ ही साथ कवि यह भी अपने अतीत के माध्यम से बताना चाहता है कि इसी राष्ट्र के आन-बान और शान की रक्षा के लिए पूर्वजों ने अपने प्राण कैसे हँसते-हँसते न्योछावर कर दिये। प्रवाह-पूर्ण शैली में युद्ध का सजीव चित्रण है। सच तो यह है कि यह वर्णन हमें वीरगाथा काल के युद्ध वर्णनों का स्मरण करा देती है। मरण का स्वागत:
'मरना नहीं मर कर अमर होना' यह था निराला के जीवन का आदर्श । यह बात नहीं है कि महाकवि को निराशा और उदासी ने न घेरा हो किन्तु उसके पार भी कुछ देखने का साहस संजोए रहे। कवि कहता है:
"गिरिपताक उपत्यका पर, हरित तृण से घिरी तन्वी। जो खड़ी है वह उसी को, पुष्पभरण अप्सरा हैं। जब हुआ बंचित जगत् में, स्नेह से , आमर्ष के क्षण। स्पर्श देती है किरण जो, उसी की कोमलकरा है।।"
1. मरण को जिसने बरा है : अपरा : पृष्ठ - 142