Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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अधिकार चाहती ही देना, सुनकर पुकार, प्राणों की पावन् गूंथ हार। अपना पहनाने को अदृश्य प्रिय को सुन्दर,
ऊँचा करने का अपर राग से गाया स्वर।" यहाँ कवि ने भारतीय इतिहास और संस्कृति का ओजस्वी वर्णन लिया है सम-सामयिक वातावरण में देश-भक्ति की प्रेरणा प्राप्त करने के लिए अतीत के गौरव से परिचित होना सर्वथा आवश्यक होता है। कवि को मानों अतीत की घटनाऐं एक-एक करके चित्रपट के समान ऑखों के सामने घूम जाती है। जिस प्रकार निपुण सृष्टि नवीनता चाहती है और दूसरे लोगों को उसके अधिकार गिनकर अथवा बहुत ही सीमित रूप में देना चाहती है। यहाँ कवि देशवासियों को यह बताना चाहता है कि जिस प्रकार इस्लामी राष्ट्र का कार्य क्षेत्र बढ़ता गया उसी प्रकार अंग्रेजों का भी राज उत्तरोत्र बढ़ता जा रहा है कवि के माथे पर चिन्ता की लकीर साफ झलकती है।
निराला के काव्य में 'उद्दाम प्रेरणा प्रस्तुत आवेग' अपनी अलग पहचान रखता है उददाम का शाब्दिक अर्थ है- जिसमें कोई बन्धन नहीं हो यानी बन्धन-रहित। निराला ने अपने काव्य में बन्धन या दबाव को कही कोई स्थान ही नहीं दिया। समूचा काव्य निर्बन्ध है। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि कोई कवि सदा उदात्त एवं ओजपूर्ण कविताएं नही कर सकता है। एक ही रचना में यदि निरन्तर उदात्त-स्वर ही सुनाई दे तो श्रोता विचलित हो उठे। निराला के काव्य की विशेषता है विरोधी तत्वों का सन्तुलन, उदात्त एवं अनुदात्त का समन्वय इसके कथा-वस्तु, चरित्र-चित्रण या छन्द प्रवाह में एक रसता नहीं आने पाती। 'राम की शक्ति-पूजा' में एक ओर राम का पराजित मन
1. सहस्राब्दि : अपरा : पृष्ठ – 179
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