Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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जाएगें, ये साधन मात्र हैं। अतः इन्हें काव्य का सहज अंग बनकर आना चाहिए, लौंजाइनस ने जिन अनेक अलंकारों को महत्व दिया है, वे सभी निराला के काव्य-संसार में उपलब्ध हो जाते हैं, कवि निराला अलंकारों का प्रयोग भावों का अंग बनाकर करता है वही उनके अलंकारिक प्रयोग का औदात्य होता हैं। यहाँ उनका सोदाहरण नामोल्लेख किया जा रहा है।
(1) अनुप्रास:- वर्णों की आवृत्ति में अनुप्रास का पुट झलकता है आवृत्ति से तात्पर्य उने वर्गों से है जो एक से अधिक बार आते हैं। कवि निराला के काव्य में यह अलंकार पाठक या श्रोता की अत॑वेदना को छूने लगती है, सच तो यह है कि सम्पूर्ण काव्य में कवि की वेदना और उसके नव-नव भावोन्मेष का सूचक या बोधक बनकर आया है। कवि निराला 'जूही की कली' के माध्यम से अनुप्रास अलंकार का एक सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है, प्रकृति का आलम्बन रूप मे वर्णन है काव्य में कवि निराला का प्रकुति प्रेम मुखर है:
"विजन-वन-बल्लरी पर, सोती थी सुहाग-भरी-स्नेह-स्वप्न-मग्नअमल-कोमल-तनु-तरूणी-'जूही की कली'
दृग बन्द किए, शिथिल-पत्राड्क में।।" "विजन-बन-बल्लरी' में जो ध्वनि निर्मित होती है वह वातावरण के सन्नाटेपन को उजागर करती है, कवि ने यहाँ अनुप्रास के लालित्य को लाने का प्रयास नहीं किया है। बल्कि बल्लरी (लता) यानी जिस वन की बल्लरी भी वह वन-विजन था जहाँ पर कवि ने इन शब्दों का प्रयोग किया है उस वातावरण की और गहराई प्रदान करने के लिए या उसका वास्तविक चित्र प्रस्तुत करने के
1. 'जूही की कली' : निराला रचनावली भाग एक : पृष्ठ - 41