Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
View full book text
________________
तरह चमकते रहते हैं। यह कवि यमुना के माध्यम से सुदुर अतीत की किन खोई हुई स्मृतियों को जगाने का प्रयत्न कर रहा है। लघु लहरों के मधुर स्वरों में किस अतीत काल की गहरी विशाल-कीड़ा की स्मृति में गुनगुना रही है। मानों तुम्हारे हृदय पर मादक ध्वनियाँ मौन पवन में गूंजती रहती है। तुम किस प्रेमी के ध्यान में डूबी हुई नित्य-नवीन संगीत भरे गीतों की रचना करती रहती हो, जिस समय समूचा राष्ट्र सोता है और एक खामोशी का वातारण रहता है उस समय भी तेरी कल-कल ध्वनि का मधुर संगीत गुंजायमान रहता है। यहाँ महाकवि ने जन-मानस को यमुना का मानवीकरण कर निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। युद्धोन्माद का चित्र:
निराला जी मानव को विलासमय जीवन त्यागने और कुछ कर गुजरने का आह्वान करते हुए कहते हैं कि हे देशवासियों राष्ट्र के विकास में युद्ध-स्तर पर योगदान दो, कवि राष्ट्रीयता की दुन्दुभी बजाते हुए कहता है कि:
"मेरी झररर् झरर, दमामे घोर नकारों की है चोप, । कड्-कड्कड् सन्सन् बन्दूकें अररर अररर अररर तोप। धूम-धूम है भीम रणस्थल, शत् शत् ज्वालामुखियाँ घोर। आग उगलती दहक-दहक दह, कॅपा रही भू नभ के छोर फटते लगते हैं छाती पर, घाटी गोले सौ-सौ बार। उड़ जाते हैं कितने हाथी,