Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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प्रस्तुत पंक्तियों में हनुमान के कोध का विशद-चित्रण है। कथा कुछ इसप्रकार है:- राम की आँखों में आँसू देखकर उनके प्रिय हनुमान कोधित होकर आकाश की ओर दौड़ते हैं शक्ति को निगलने के लिए। हनुमान के उसी कोध की विशदता की तुलना समुद्र की विशद्ता से की गयी है। ऐसी तुलना कोई महान अवधारणाओं वाला कवि ही कर सकता है, यहा सागर के मर्यादाहीन रूप को चित्रित किया गया है। जल-राशि को मथता हुआ वायु भंयकर शब्द कर रहा है। यह शब्द की भयंकरता कुछ इस प्रकार है मानों बज्र के समान दृढ़ अंग वाले तथा एकादश रूद्र के अवतार हनुमान जी कूद्ध होकर अट्टाहास करते हुए आकाश की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन इस भंयकरता में भी जिस तरह की उदात्तता कवि ने दिखाई है, वह निराला के यहाँ ही संभव है।
"उद्दाम प्रेरणा प्रस्तुत आवेग अर्थात, भावावेग की तीव्रता"
लौंजाइनस का विचार है कि जो आवेग, उन्माद, उत्साह के उद्दाम वेग से फूट पड़ता है और एक प्रकार से वक्ता के शब्दों को विस्मय से भर देता है उसके यथा-स्थान व्यक्त होने से स्वर्ण जैसा औदात्य आता है, वह अत्यन्त दुर्लभ है। भव्य आवेग के परिणाम स्वरूप हमारी आत्मा स्वतः ऊपर उठकर मानों गर्व से उच्च-आकाश में विचरण करने लगती है, तथा हर्ष एवं उल्लास से भर जाती है। बज्रपात का पलक झपकाए बिना सामना संभव है पर भावावेग के प्रभाव से अविचल-अछूता बना रह पाना संभव नहीं। हमारा स्वभाव है कि हम छोटी-छोटी धाराओं की अपेक्षा महासागर से अधिक प्रभावित होते हैं। औदात्य मनुष्य को ईश्वर के ऐश्वर्य के समीप तक ले आता है। उल्लास-आनन्द, देश-काल-निरपेक्ष होता है जो सदा सबको आनन्दित करता है वही औदात्य आवेग है। विस्मय विमुग्ध करने वाला चमत्कारी-भाव परिवेश मानव में गरिमा को जन्म देता है। उदात्त उत्कृष्ट वही है जो पाठक या स्रोता को विमुग्ध या
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