Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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अविभूत करे। आवेग दो प्रकार का बताया गया है भव्य और निम्न। एक से आत्मा का उत्कर्ष होता है, तो दूसरे से अपकर्ष। निम्न आवेग में दया, शोक, भय, आदि के भाव आते है। उदात्त सृजन में वस्तुतः भव्य आवेग सहायक होता
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निराला काव्य का मुखर स्वर है 'उदात्त' उसका सजग गुण है 'ओज' | उसमें ऐसी शक्ति है जो सिद्ध संगीत की तरह मनुष्य की चेतना को ऊपर उठाती है, यह उदात्त-तत्व काव्य की विषय-वस्तु मूर्ति-विधान ध्वनि एवं छन्द की लय में एक साथ व्याप्त रहता है यद्यपि 'उदात्त' भावना के लिए विस्तृत कथा-वस्तु और सूक्ष्म-चरित्र सदा अपेक्षित नहीं होता है थोड़ी से सारगर्भित शब्दों में भी एक विशद् चित्र खींचा जा सकता है। निराला काव्य में प्रवाह है लेकिन फैलाव नहीं है भावना घनीभूत होकर कम से कम शब्दों में प्रकट होती है।
वीर रसात्मक रचना में विस्तार अधिक है कवि का वस्तु-विधान विषयानुसार छोटा और बड़ा होता रहता है। अर्थात् कभी वे लघु-चित्रों की उद्भावना करते हैं और कभी उनका चित्रफलन वस्तु के अनुसार विस्तृत और विषद् होता है। वीर रस की रचनाओं में निराला का काव्य-शिल्प अधिक प्रसरण-शील हो गया है, हम 'महाराज शिवाजी के पत्र' को देखें अथवा जागो फिर एक बार सर्वत्र दूर-दूर तक वीर-भाव को जगाती हुई निराला की पंक्तियाँ वहाँ विराम लेती हैं। जहाँ पाठक एक लम्बे चित्र का आकलन कर लेने के पश्चात् स्वयं विराम चाहता है। जहाँ जहाँ उदात्त की सृष्टि कवि ने करनी चाही है वहाँ वहॉ शिल्प में इसी प्रकार की सह-प्राणता और आकारगत् प्रसार आ गया है। 'राम की शक्ति-पूजा' हो या 'तुलसीदास' इन दोनों रचनाओं में महाकाव्योचित औदात्य लाने का कवि का प्रयत्न रहा है। कवि के छन्दों के वाचन में उतार-चढ़ाव की कला अद्भूत एवं विलक्षण थी। 'यमुना के तट पर'
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