Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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रहा है, यहाँ उदात्तता-युक्त भावावेग के समाज को नई, जागृति व नव-चेतना का संचार करता है। युग की कठोर आवश्यकताओं ने इस शक्तिधर शोभाशाली कवि को जन्म दिया है, इसकी ऊर्जस्वित् वाणी में मुमुषुओं को नवीन प्राणोण्या मिलेगी। धरती से छल-कपट द्वेष दंभ, दुगुण, दूर, होंगे शुभ सात्विक भावों का उदय होगा असत् पर रात की प्रतिष्ठा होगी।
यहाँ काव्य के माध्यम से देवी सरस्वती का मुखरित आवेग जाग उठा। जीवन को जड़ता के भावों से भरने वाली तथा दूषित भावों रूपी पंकिल से युक्त जो सैकड़ों काव्य कृतियाँ रूपी नदियों के वेग के साथ बहती रहती है:
"देश-काल के शर से विधंकर, यह जागा कवि अशेष छविधर। इनका स्वर भर भारती मुखर होएगी, निश्चेतन, निजतन मिला विकल । छलका शत् शत् कल्मष के छल
बहती जो वे रागनी सकल सोएगी।" मानस की कथा में तुलसी के राम ऋषियों का अस्थि-समूह देखकर आँखों में आँसू भर लेते हैं, फिर यही राम ऋषिमुनियों एवं देवताओं को अपने आश्वस्ति वचनों से निर्भय निश्चिन्त बनाते हैं:
"अस्थि समूह देखि रघुराया, पूछेउ मुनिन्ह लागि अतिदाया। निसिचर निकर मुनिन्ह सब खाए,
सुनि रघुवीर नयन जल छाये। xxx
जानि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा
1. तुलसीदास : निराला रचनावली भाग(1) : पृष्ठ – 306