Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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शामिल हो जाने का आह्वान करते थे। इस प्रकार निराला जी का देश-प्रेम मुखर है, भेड़ और बकरी की तरह निरूपाय एवं दीन बनकर विदेशी दासता का अभिसप्त जीवन व्यतीत करने की अपेक्षा मातृभूमि पर शीश चढ़ा देना कहीं अधिक अच्छा है।
कान्ति का मानवीकरण:
निराला ने अपने 'बादलराग' कविता के माध्यम से प्रकृति के विप्लवकारी स्परूप का वर्णन कर रहे हैं। कवि आवेग से युक्त एवं मानवीकरण से परिपूर्ण बादल को पुचकारते हुए मानों उलाहना दे रहा है:
"बार-बार गर्जन, वर्षण है-मूसलाधार! हृदय थाम लेता है संसार सुन सुन घोर बज्र हुकार! अशनिपात से शायित उन्नत-शतशतवीर, क्षत-विक्षत हत अचल शरीर
गगनस्पर्शी स्पर्धा धीर।।" यहाँ कवि अपने 'बादल-राग' कविता के माध्यम से यह दर्शाना चाहता है कि कान्ति के समय बड़े गर्वीले वीर धराशयी हो जाते हैं। अर्थात कान्ति के लहर के सम्मुख कोई भी शक्ति टिक नहीं पाता। निराला जी कान्ति का आह्वान करते हैं, सच्चाई भी यही है कि निराला का यह काल बंगाल में रहने का काल था उस समय बंगाल प्रदेश-कान्तिकारियों की कर्मभूमि बनी हुई थी, पूरे देश में मानों जुनून छाः गया था । सच्चाई तो ये है कि कवि एक
1. बादल-राग : निराला रचनावली भाग (1) पृ0 -
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