Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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(v) पुनरावृत्ति और छिन्न-वाक्यः- इन अलंकारों में जंब तक आत्मिक उदात्तता की सामग्री नहीं आएगी तब तक आत्मा में आवेग और संक्षोभ की अभिव्यक्ति से मनोदशा में अनेक मनोवेगों का उठना स्वाभाविक है। इसलिए बाध्य होकर प्रयोक्ता को छिन्न वाक्यों और पुनरावृत्तियों का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है। (vi) प्रत्यक्षीकरण:- प्रत्यक्षीकरण में साक्षात् वर्णन की क्षमता रहती है। समस्त वर्ण्य-विषय जीवन्त-सा हो उठता है। इस अलंकार का प्रयोग प्रायः पुनरावृत्ति
और छिन्न वाक्य आदि के सहयोग में ही होता है। (vii) सारः- इसमें वर्ण्य-वस्तु को उदात्त-तत्व की दृष्टि में असाधारण की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। तथा वर्ण्य-वस्तु में लगातार उदात्त का अभिव्यक्तिकरण रहता है। (viii) रूप-परिर्वतन:- यह अलंकार वचन, काल, पुरूष, कारक और लिंग के परिवर्तन द्वारा विषय के प्रतिपादन में विविधता और सजीवता उत्पन्न करता है। (vx) पुरूष- परिवर्तन:- पुरूष-परिवर्तन में अन्य पुरूष के लिए प्रायः मध्यम पुरूष के प्रयोग द्वारा (अथवा अन्य प्रकार के विपर्यय द्वारा) प्रत्यक्ष प्रभाव उत्पन्न किया जाता है। कभी-कभी ऐसा होता है कि लेखक किसी अन्य व्यक्ति के बारे मे बात करते-करते एकाएक बात को काटकर स्वयं अपने आपको उस व्यक्ति का रूप दे देता है। (x) पर्यायोक्तिः - इसमें बात को बहुत तरह से सजाकर चमत्कार के साथ कहा जाता है। जैसे मृत्यु के लिए 'नियत-मार्ग' का प्रयोग।
उपर्युक्त अलंकारों के अतिरिक्त रूपक और अतिशयोक्ति का भी उदात्त शैली के निर्माण में योगदान है। उत्कृष्ट-भाषा:- उदात्त-शैली का मुख्य तत्व है उत्कृष्ट भाषा, लौंजाइनस ने 'आन दि सब्लाइम' नामक पुस्तक में विचार और पद्-विन्यास को एक दूसरे
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