Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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कल्पना तत्व:- लौंजाइनस ने "आन दि सब्लाइम” नामक पुस्तक में उदात्त पर विचार करते समय प्रासंगिक रूप से बिम्ब और कल्पना चित्र प्रवक्ता की गरिमा ऊर्जा और शक्ति के सम्पादन में बहुत कुछ सहायता करते हैं। 'कल्पना', लेखक के मतानुसार उस शक्ति का नाम है जो पहले कवि वर्ण्य-विषय का मनसा साक्षात्कार कराती है और फिर भाषा में चित्रात्मकता का समावेश कर श्रोता के मनश्चक्षु के सामने उसे प्रत्यक्ष कर देती है। लौंजाइनस की कल्पना-विषयक उक्त धारणा आज भी समीचीन प्रतीत होती है। विरोधी तत्व:- औदात्य के विरोधी तत्व पर विचार करते हुए लौंजाइनस ने वालेयता का उल्लेख किया है। वालेय शब्द का अर्थ है बचकाना-जिसमें बच्चों के दुर्गुणों का ही प्राधान्य रहता है- जैसे चापल्य गरिमा का एकान्त अभाव, संयम का अभाव एक प्रकार की हीनता कायरता आदि। स्पष्टतया ये ही औदात्य के विरोधी तत्व है- और चंचल पद-गुम्फ, असंयत, रूचिहीन, वास्फीति हीन और क्षुद्र भावाडम्बर व शब्दाडम्बर ये सभी दोष उदात्त को निकृष्ट बना देते हैं। वास्फीति से अभिप्राय है अर्थ या भाव की गरिमा के अभाव में अनावश्यक वागाडम्बर का प्रयोग। उदाहरणार्थ- वृद्ध जैसे क्षुद्र पदार्थ के लिए "जीवित समाधि' शब्द का प्रयोग। भावाडम्बर का अर्थ हैं 'जहाँ किसी आवेग की आवश्यकता नहीं है वहाँ अवसर के अनुपयुक्त और खोखले आवेग का प्रदर्शन किया जाए अथवा जहाँ संयम की आवश्यकता है, वहाँ असमय दिखाई दे।
शब्दाडम्बर से लौंजाइनस का आशय वास्तव में अतियुक्त शब्दावली का है जिसके लिए हिन्दी में 'उहा' शब्द का प्रयोग होता है। जैसे-स्त्री के लिए 'वक्षुदंश', पुतली के लिए 'आँख की कुमारी' आदि का प्रयोग। इनके अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार का विवेकहीन चमत्कार प्रयोग उदात्त का विरोधी है। आगे