Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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पिछले दोनों अध्यायों में बताया जा चुका है कि लौंजाइनस के "उदात्त तत्व' की विशेषता क्या है? और निराला के सर्जनात्मक आयाम को कमवार प्रस्तुत किया गया है। इस अध्याय में लौंजाइनस के उदात्त-तत्व सिद्धान्त के पॉचों आयामों को कमवार निराला की कविताओं पर इसी के परिपेक्ष्य में मूल्यांकन करने का प्रयास किया गया है।
लौंजाइनस का पहला सिद्धान्त है-'महान अवधारणों की क्षमता। लौंजानइस के अनुसार उस कवि की कृति महान नहीं हो सकती जिसमें धारणाओं की क्षमता का अभाव हो, उदात्तता महान-विचारों में आश्रय पाती है, क्षुद्र विचारों में नहीं। तात्पर्य यह है कि उसी कवि की कृति महान हो सकती है, अनुकरणीय हो सकती है, साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकती है, काव्य सिद्धान्तों की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकती है जिसमें महान विचारों की क्षमता हो। निराला के अन्दर वो सारे गुण मौजूद थे, जिसका प्रतिपादन लौंजाइनस ने उदात्ततत्व के सिद्धान्त के रूप में किया है। कवि को महान बनने के लिए अपनी आत्मा में उदात्त-विचारों का पोषण करना होता है, ताकि वह गंभीर विचारों वाले शब्दों का सर्जनात्मक प्रयोग कर सकें। महान कवियों की कृतियों के पारायण से जो संस्कार प्राप्त होते हैं, वे निश्चय ही श्रेष्ठ रचना के प्रणयन में सहायक होते हैं। विज्ञ पाठक निराला जी की महनीयता से अपरिचित नहीं हैं। वे जितने उदात्त थे उतने ही सहृदय और करूणापूर्ण भी। हिमालय के समान व्यक्तित्व की विशालता लिए हुए उनकी सहज द्रवण-शीलता, करूणा की गंगा बन जाती थी और उस समय के किसी के भी दुःख को दूर करने में अपना सब-कुछ त्याग सकते थे। किसी दीन-दलित के वेदना विह्वल क्षणों में उनका रक्षा कवच बन जाना तथा अपने हृदय रस के अमृत से सरावोर कर उसे निर्भय होने का आश्वासन देना निराला जैसे पर-दुख कातर का ही काम था। व्यक्ति
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