Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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आया हँसता हुआ बसन्त । ।"
यह देखकर आश्चर्य होता है कि दुःखों से निरन्तर घिरा रहने वाला और संघर्षो से जुझते रहने वाला व्यक्ति जब कोई सर्जनात्मक अभिव्यक्ति देता है, तो वह उस पूरे परिवेश में पुष्प - मंजरी की सुगन्ध और नव-जीवन का अमृत मन्त्रसर भर देना चाहता है । ऐसी विरोधी रचना -धर्मिता निराला जैसे महान अवधारणाओं वाले कवि के यहाँ ही संभव है । पतझड के बीच हॅसते हुए बसन्त की कल्पना कोई विराट हृदय वाला कवि ही कर सकता है।
'सरोज-स्मृति' निराला जी की एक प्रसिद्ध रचना है। कहने को तो आलोचकों ने इसे शोक-गीत की संज्ञा दी है। शोक- गीत का इससे अच्छा उदाहरण हिन्दी-साहित्य में फिलहाल बिरले ही हैं। इससे सरोज के बहाने कवि के कटु जीवनानुभव के विभिन्न आयाम परत-दर-परत खुलते जाते हैं। लेकिन इस कविता में कवि अपने आर्थिक-संघर्षो का लेखा-जोखा प्रस्तुत नहीं किया है बल्कि अपने उत्कृष्ट विचारों को सर्जनात्मक जामा पहनाकर एक उच्च-कोटि की रचना की है ।
"धीरे-धीरे फिर बढ़ा चरण,
बाल्य की केलियों का प्राद्रगण ।
कर पार कुंज तारूण्य सुघर,
आयी लावण्य भार-थर-थर |
कॉपा कोमलता पर सस्वर,
ज्यों 'मालकौश' नववीणा पर
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पिता के मुख से पुत्री के तारूण्य का वर्णन कोई सहज काम नहीं है। किन्तु निराला जी ने एक मनोवैज्ञानिक दृष्टि से जो चित्र दिया है, उससे इस
1. बसन्त समीर : परिमल : निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ-192
2. सरोज - स्मृति : निराला रचनावली (1) द्वितीय अनामिकाः सुधा 9 अक्टूबर 1935: पृ0-319
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