Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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रचनाएँ संकलित हुई हैं। 'सान्ध्य-काकली' को छोड़कर शेष सभी रचनाएं उनके जीवन-काल में ही प्रकाशित हो गयी थी, 'सान्ध्य काकली' का प्रकाशन (1969) में उनके मरणोपरान्त हुआ। ये सारी रचनाएँ निराला के काव्य विकास-कम को कोई नया आयाम नहीं दे पाती हैं। प्रथम दृष्टया इनकों देखने से ऐसा लगता है कि निराला एक बार फिर पिछे लौट गए हैं। जहाँ तक निराला की धर्म-भावना का सवाल है वो अन्त तक उनमें बनी रही, उन पर 'वेदान्त' का भी गहरा असर है, लेकिन अनेक बार इसका अतिक्रमण भी किया है। एक जगह 'मार्क्स' ने लिखा है, "धार्मिक वेदना एक साथ ही वास्तविक वेदना की अभिव्यक्ति और वास्तविक वेदना के विरूद्ध विद्रोह भी है"। निराला के इस अन्तिम चरण के काव्य को इसी दृष्टि से देखना उचित होगा। उनकी एक अन्नयतम् विशेषता यह भी है कि वे ग्राम्य जीवन के बिल्कुल निकट स्थित हैं, जो उनके अन्तिम चरण की रचनाओं पर ग्राम्य-जीवन, ग्राम्य-संस्कृति के अद्भूत आत्मीय वर्णन के रूप में दिखाई देता है। यशस्वी कवि और समीक्षक डा0 केदारनाथ सिंह ने निराला की इस चरण की कविता को “परदेश से घर लौटे हुए कवि की कविता" जैसी संज्ञा से अभिहीत करते हैं।