Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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तू हरामी खानदानी ।।" 'कुकुरमुत्ता' निराला की उन गिनी- चुनी रचनाओं में है जिस पर अनगिनत आलोचकों ने टिप्पणियाँ की है। किसी ने इसे अभिजात्य से मुक्ति की संज्ञा दी है, तो किसी ने कुछ और। यहॉ निराला ने एक तरफ गुलाब को रखा है तो दूसरी तरफ कुकुरमुत्ता को। गुलाब जहाँ एक तरफ सभ्य समाज का प्रतीक है वहीं कुकुरतमुत्ता असभ्य समाज का, गुलाब का बड़प्पन इस बात में है कि वह 'कुकुरमुत्ता' द्वारा बार-बार की गयी टिप्पणियों का कोई जबाब नहीं देता। यही से कवि की भूमिका प्रारम्भ होती है, यही वह उदात्तता है जिससे समाज को महान अवधारणाओं की क्षमता का एहसास होता है। इस तरह का उदात्त अन्यत्र असंभव है। प्रकृति के मानवीकरण में कवि का औदात्य:
औदात्य की अवधारणा 'सन्ध्या-सुन्दरी' में सिर्फ मानवीकरण की दृष्टि से ही देखा गया है:
"दिवासान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है। वह सन्ध्या -सुन्दरी परी -सी, धीरे-धीरे-धीरे, तिमिरांचल मे चंचलता का नहीं कहीं आभास, मधुर-मधुर है दोनों उसके अधरकिन्तु गम्भीर नहीं है उसमें हास विलास।। 2
1. कुकुरमुत्ता : निराला रचनावली (1) : हंस मासिक 3 अप्रैल 1941 - पृष्ठ - 50 2. संध्या-साप्ताहिकःपरिमल में संकलितःनिराला रचनावली(1)मतवाला साप्ताहिक: 24 नवम्बर
1923:पृ0-77