Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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के आश्रित माना है। अतएव स्वभावतः उदात्त की अभिव्यक्ति का माध्यम उत्कृष्ट या गरिमामयी भाषा हो सकती है। भाषा की गरिमा का मूल आधार है शब्द-सौन्दर्य, जिसका अर्थ है 'उपर्युक्त और प्रभावक' शब्द प्रयोग। सुन्दर शब्द ही वास्तव में विचार को विशेष प्रकार का आलोक प्रदान करते हैं। उन्हीं के द्वारा प्रत्यक्ष रूप में किसी रचना में सुन्दरतम् मूर्तियों की भॉति भव्यता सौन्दर्य, गरिमा, ओज और शक्ति तथा अन्य श्रेष्ठ गुणों का आविर्भाव होता है और मृत-प्राय वस्तुएं जीवन्त हो उठती है। किन्तु 'गरिमामयी भाषा' का उपयोग सर्वत्र नहीं करना चाहिए क्योंकि छोटी-छोटी बातों को बड़ी और भारी-भरकम संज्ञा देना किसी से छोटे बालक के मुँह पर पूरे आकार वाला त्रासद अभिनय का मुखौटा लगा देने के समान है।' अर्थात्, गरिमामयी पदावली का उपयोग प्रसंग के अनुरूप ही होना चाहिए क्योंकि वस्तु और शब्द के बीच पूर्ण सामंजस्य बिना उदात्त की योजना के सम्भव नहीं हैं। गरिमा-मय एवं अर्जित रचना-विधान:- यह उदात्त-शैली का तीसरा तत्व है।," रचना का अर्थ है भाषा का सामंजस्य, यह गुण स्वभाव जात होता है और हमारी श्रवणेन्द्रिय को ही नहीं वरन् हमारी आत्मा तक को प्रभावित करता है रचना-विधान के अर्न्तगत् शब्दों-विचारों, कार्यों, सुन्दरता तथा राग के अनेक रूपों का संगुम्फन होता है अर्थात् रचना का प्राण तत्व है सामंजस्य जो उदात्त-शैली के निर्माण के लिए अनिवार्य है। यह सामंजस्य वक्ता और हमारे बीच समभाव की स्थापना करता है।" हमें भव्यता, गरिमा ऊर्जा तथा अपने भीतर निहित प्रत्येक भाव की ओर प्रवृत्त करता है, और इस प्रकार हमारे मन के ऊपर पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लेता है।"
1. काव्य में उदात्त तत्व- डॉ० नगेन्द्र-पृष्ठ-91 2. काव्य में सौन्दर्य और उदात्त तत्व-शिव बालक राय - पृष्ठ-107